साथ तो दे ना सकी...
साथ तो दे ना सकी...
1 min
1.3K
मैं अक्सर सोचता हूँ की...
आसानी से क्यों नहीं मिलती
चाहत जिंदगी में ...
शायद इसलिये कि वो बहुमूल्य है !
जब याद उसकी आती है तो...
अकेले में रोता हूँ अक्सर !
दिन रात सपने उसके...
उसे मिलें भी तो कैसे ?
कौन किसका रक़ीब होता हैं ..
कौन किसका हबीब होता हैं !
बदल जाते हैं नाते- रिश्ते ...
जहाँ जिसका नसीब होता हैं !
माना कि तुम मेरी ना हो सकी..
अब बस तू इतना कर !
साथ तो दे ना सकी..
थोड़ा सा दे दे तू जहर !