सार छंद.....
सार छंद.....
शब्द-साक्षी
स्वयं सिद्ध नर कर निज दर्शन,
जीवन के तुम साक्षी ।
परहित को पर ताप हरण कर,
मनुजता हो गवाक्षी ।।
जन्म शिवानी तुमसे पाकर,
धन्य मिला यह काया ।
हिय के हे निवासिनी माता,
रहना बनकर साया ।।
दुस्सह पाप मिटाओ दात्री,
जय हो मात शताक्षी ।
स्वयं सिद्ध नर कर निज दर्शन,
जीवन के तुम साक्षी ।।
