रूह की पाकीजगी
रूह की पाकीजगी
जिंदगी महबूबा की मानिंद ,रुखसत करेगी जब इस जहां से ,
कर्मो की बुलंदी से लिपटी ,रूह की गूंज सुनाई देगी उस जहां में।
शफाओं की बारिश की भीनी खुशबू में ,कर्मो का हिसाब होगा,
सवालो के उस जहां मे,हर.सवाल का जवाब देना होगा।
रूह की पाकिजगी का दावा,इस जहां में सब करते हैं,
खुदा के फैसले तेरे दावो के हिसाब से ,कब चलते हैं?
तू इस जहां में बिखेर कुछ, यूं अपनी खुशबू,
कि हर कर्म मे आये ,उस खुदा का अक्स हरसू।