रूह का मार्ग
रूह का मार्ग
सच कहा था उसने
कि मेरा तुम्हारा जैसे
पिछले जन्म का बंधन है कोई
और कर्म सिद्धान्त को
न मानते हुए भी मैं
न जाने कब बंध गयी थी
किसी अनजाने बंधन में
और उसके असीम निश्चल प्रेम ने
बना लिया था जैसे
मेरी रुह से अटूट रिश्ता
मगर तर्क था उसका कि
रूह तक पहुंचने के लिए
अनिवार्य है देह की परिक्रमा
क्योंकि रूह का निवास ही
होता है देह के भीतर
हां तृप्त कर गया वो
मेरी प्यासी रूह को
मगर छोड़ गया एक प्रश्नचिह्न
कि रुह तक पहुंचने का
इस कलयुगी सृष्टि में
कोई और मार्ग नहीं है क्या।