रुबाइयां
रुबाइयां
जो आज लिखने बैठी तो
इस सोच में डूबी
लिखुं तो क्या लिखूं ?
फलक के बारे में लिखूं
या ज़मीन के बारे में
या फिर इन दोनों को जोड़ते
हबा के बारे में
समंदर के बारे में लिखूं
या कीनारे के बारे में
या फिर इन दोनों को जोड़ते
लेहरों के बारे में
रब के बारे में लिखूं
या उसके बंदों के बारे में
या फिर इन दोनों को जोड़ते
इबादत के बारे में
दील चीर के
कुछ अल्फाज निकलते तो हैं
पर महज एक कोरे कागज़ पर
उतरने को तैयार नहीं
खौफ तो लगता ही है
जब गर्दिश में हो सितारे
सिर्फ दर्द ही दर्द देती है
आलम चाहे कुछ भी हो
ज़ेहन को निचोड़ के
कितना भी तडपो
रुबाइयां सारे दफ़न हो जाते हैं
मन ही मन में।