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Rashi Saxena

Tragedy Classics Thriller

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Rashi Saxena

Tragedy Classics Thriller

रुबाब-ए-असबाब

रुबाब-ए-असबाब

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बिखर गया सामान -ओ-असबाब

परिंदा उड़ चला तोड़ के मेहराब 

जिसे पसंद थी दावतें

 गोश्त-ओ-कबाब 


ऐसा बदला वक्त और नसीब

न कोई पूछता रोटी न आब

रह गई पीछे जमीन-ओ-जागीरें 

झिन गया रुतबा और रुबाब 


मस्ती हस्ती शराब-ओ-शबाब

एक अदना सा आदमी भी 

नहीं कर रहा अदब से आदाब


कीमत कहाँ थी इन साँसों की

शीशे के धुँए में उड़ा दिए लम्हें

आज तन्हा है जन्नत में भी

गुफ्तगू का किसी से है ख़्वाब


बिखर गया सामान -ओ-असबाब

परिंदा उड़ चला तोड़ के मेहराब।


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