ऋतुराज
ऋतुराज
धरा का श्रृंगार हुआ
घटाओं का आग़ोश मिला
सितारों ने सिंदूर भरा
मदहोशी का जाम भरा
गगन में है हलचल
इन्द्र धनुषी आँचल
क्या तुम आ गए रितुराज
हवाएँ स्वागत को आतुर
दामिनी हो रही व्याकुल
उसकी आँख मिचौली
चाँद और सूरज की लुका छिपी
रंगों का संसार खिला
झूम उठी तरूवर की शाखा
छेड़ कर संगीत मिलन का
आगमन की है तैयारी
नव कोंपलों की मुस्कान
अंकुर का जहान बसा
हाँ यें तुम्हीं हो
स्वागत है,अभिनंदन तुम्हारा
पुलकित है हर्षित जग सारा।