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Rajan Singh

Abstract

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Rajan Singh

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क्यों नहीं!

क्यों नहीं!

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मधुमास नव कोमल तरुण पल्लव टिकाते क्यों नहीं ?

मज्जर महक मोहक विटप सुंदर बनाते क्यों नहीं ?

चंचल प्रभा की है किरण रवि मुख सुशोभित नभ नखत-

पाषंड बादल कर घिरे उसको भगाते क्यों नहीं ?


कानन कुसुम सुकुमार किसलय है सुगंधित माधवी-

हिय प्रेरणा सौरभ मृदुल मंडल लुभाते क्यों नहीं ?

करते कुतूहल अलि-मधुप कलियन हृदय गुंजार निधि-

वैभव कुसुम कलि मधुकरी चेतन सुहाते क्यों नहीं ?


संसृति समर्पण-तप विभूषण निज फलित संसार में-

नाता सहज प्रियतम भ्रमर कलि से निभाते क्यों नहीं ?

निधि रत्न आकर्षण क्षणिक सहचर जगत का हो गया-

भूमा बदन स्पंदित पुरुष सम नग समाते क्यों नहीं ?


श्री कंत प्रियतम माधुरी मन-मोहिनी छवि मद भरी-

जब मुख निरेखे हरि कलित विधु-वपु रिझाते क्यों नहीं।


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