क्यों नहीं!
क्यों नहीं!
मधुमास नव कोमल तरुण पल्लव टिकाते क्यों नहीं ?
मज्जर महक मोहक विटप सुंदर बनाते क्यों नहीं ?
चंचल प्रभा की है किरण रवि मुख सुशोभित नभ नखत-
पाषंड बादल कर घिरे उसको भगाते क्यों नहीं ?
कानन कुसुम सुकुमार किसलय है सुगंधित माधवी-
हिय प्रेरणा सौरभ मृदुल मंडल लुभाते क्यों नहीं ?
करते कुतूहल अलि-मधुप कलियन हृदय गुंजार निधि-
वैभव कुसुम कलि मधुकरी चेतन सुहाते क्यों नहीं ?
संसृति समर्पण-तप विभूषण निज फलित संसार में-
नाता सहज प्रियतम भ्रमर कलि से निभाते क्यों नहीं ?
निधि रत्न आकर्षण क्षणिक सहचर जगत का हो गया-
भूमा बदन स्पंदित पुरुष सम नग समाते क्यों नहीं ?
श्री कंत प्रियतम माधुरी मन-मोहिनी छवि मद भरी-
जब मुख निरेखे हरि कलित विधु-वपु रिझाते क्यों नहीं।