जब मुख निरेखे हरि कलित विधु-वपु रिझाते क्यों नहीं। जब मुख निरेखे हरि कलित विधु-वपु रिझाते क्यों नहीं।
रेत अबीर और गुलाल के रंग में रंग गई देखो बसंत आ गई। रेत अबीर और गुलाल के रंग में रंग गई देखो बसंत आ गई।
पत्तियाँ सुकुमार सी, देखने को मन करता बार बार उसे पत्तियाँ सुकुमार सी, देखने को मन करता बार बार उसे
पुष्प बन समर्पित हो जाना, तुम्हारे चरणों में चढ़ जाना पुष्प बन समर्पित हो जाना, तुम्हारे चरणों में चढ़ जाना
यह कोमल भोला सौंदर्य मन प्राण को पुलकित करता। यह कोमल भोला सौंदर्य मन प्राण को पुलकित करता।