अनजानी याद
अनजानी याद
कभी चाहा था समर्पित हो जाना,
कभी चाहा था तुमको पा लेना,
व्याकुल किया था अनजानी यादों ने,
तरसाया था अनदेखे सपनों ने।
अधखिली कली सी आ करके,
चुपचाप तुम्हारी पूजा का,
पुष्प बन समर्पित हो जाना,
तुम्हारे चरणों में चढ़ जाना।
लिख डाली थी एक कविता भी,
मधुर भाव भरिता सी,
कोमल भावों की मंजूषा सी,
सुकुमार सपनों की थाती सी,
लय की याद बची है बाक़ी,
छंद उसके सब भूल गई,
गुनगुन करके रह जाती तान,
बोल उसके आते याद नहीं।
सपने पूरे कब किसके होते हैं,
परिवर्तन का भार सभी सहते हैं।
