दोस्त
दोस्त
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खाई थी जो बर्फ़ मलाई
घूमे थे ले टूटी हुई सुराही
कागज़ को फाड़ कर हमने
जो बनाये थे जहाज हवाई
साइकिल के टायर को लेकर
संग भागे दौड़े थे बन सौदाई
वो याद है अभी थोड़ी-थोड़ी बाकी
दिली फरियाद है एक जोड़ी बाकी
रास्ता निहारे अँखियाँ
मुलाकात की है अभी घड़ी बाकी।
वो नीम की निंबोरी
वो गाँव की हसीन छोरी
छेड़े थे जो हम-तुम मिलके
हम दोनों हमजोली
वो उम्र ही थी थोड़ी
कागज़ के जैसे कोरी।
फिर याद तेरी आयी
मेरी आँख डबडबाई
मिलते कहाँ शहर में
तेरे जैसा दोस्त रहनुमाई।
खेतों में चराते गाय
और गुड़ वाली चाय
वह नींबू का आचार
जिसमें था माँ का प्यार
रोटी चीनी में छुआ के हमने
जो संग-संग खाये थे दोनों यार।
वो याद आ रही है
मेरे दोस्त मेरी जान जा रही है
तेरी याद आ रही है।