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Bhavya Soni

Abstract

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Bhavya Soni

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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क्यूँ लगता है मयख़ानों की होती है,

दुनिया केवल पैमानों की होती है।


इतनी फ़िक्र है उसको मेरी हर शय की,

शह्र में जितनी अनजानों की होती है।


आज मिला तो उसने मुझसे बात करी,

बात वही जो बेगानों की होती है।


जब चाहेगा दिल तक आ जाएगा वो,

ये ही ख़ूबी पैकानों की होती है। 


इतने लोग हैं फिर ये कैसी ख़ुशबू है,

ऐसी ख़ुशबू वीरानों की होती है।


सहरा दिल में जब से तुझको देखा है

तब से बारिश अरमानों को होती है।


लम्हा लम्हा उसको मुरझाते देखो,

बड़ी सज़ा तो गुलदानों की होती है। 


दूर तलक सन्नाटा पसरा दिखता है,

ऐसी आहट तूफ़ानों की होती है। 


जगह नहीं है लोगो की घर में कोई,

जगह मुकर्रर सामानों की होती है।


ख़ुद को ख़ुद ही बेच दिया बाज़ारों में,

क्या मजबूरी इंसानों की होती है।


ज़्यादा दूर नहीं जा सकते ये लेकर,

भारी गठरी अहसानों की होती है।


जंग फ़क़ीरों से जब भी वो करते हैं,

हार हमेशा सुल्तानों की होती है।


जीना है आसान बहुत इस दुनिया में,

मुश्किल तो बस दीवानों की होती है।


तुमको जो लेना है ख़ुद ही ले लो तुम,

ख़ातिरदारी मेहमानों की होती है।


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