हौसले
हौसले
इस शहर में हस्ती मेरी
उन्मन सी अब रहने लगी
खामोश सा रहता हूँ मैं
कैद में आवाज है
पाखी परों को खोल पूछे-
सुस्त सा बैठा है क्यों?
काया तेरी नासाज है?
सिर उठा और तान मस्तक
हौसले परवाज है।
देख मेरी ओर मानव !
भोर संध्या मेरा कलरव
सुनके ही जगती है जगती
तय मेरा हर काज है
हौसले परवाज है।
हारकर न बैठना
गम में क्यों है पैठना ?
हाथ पैरों को उठा
सर पे सजेगा ताज है
हौसले परवाज है।
कल्पना के पंख ले
हाथ में तू शंख ले
कर दे रे उद् घोष बंदे !
नभ को तुझपे नाज है
हौसले परवाज गै।
कलम को पुष्पक बना
शक्ति भर स्याही की तू
मेघ की पुस्तक बनाकर
शब्दों पर कर राज तू
बन निगाहों की चमक
लेखक का ये अंदाज है
हौसले परवाज है।