ये सौंदर्य
ये सौंदर्य
ये सौंदर्य
कितना मनोहक है
इसमें है
सम्मोहन
जो सब कुछ
भुला देता है।
भूल जाता है
इंसान
खुद को
इस संसार को
बस
डूब जाता है
इसी सौंदर्य में।
दिखता है उसे
फूलों का खिलना
बहार
वसंत की,
फुहार
वर्षा की
उसका पूरा संसार है
इसी सौंदर्य में।
अपने पराये
सब एक
सुख दुःख
सब दूर
एक सुकून
एक शांति सी
पाता है
इसी सौंदर्य में।
क्या ये सच है
या
कोई भ्रम
कैसा सम्मोहन है
जिसने
कर दिया जग से अलग
क्या रिश्ता है,
क्या नाता है
क्यों लिपटा है
इंसान
इसी सौंदर्य में ?