लड़की की अभिलाषा
लड़की की अभिलाषा
हाँ,मैं लड़की हूँ
पंक्षी हूँ ,माँ - बाबा की
आँगन की
सीखा है उड़ना
अभी- अभी ही
अपने हिस्से का आसमान
नाप लूँगी
मुझे उड़ने दो।
बोल सकुंगी
उड़ूँगी, अपने मन से
तूफान की बात को न मानते हुए
जिधर चाहूँ
उड़ चलूँ
मुझे उड़ने दो।
कली हूँ फूल हूँ
समाज बागवान की
ओढूँगी ,बिछाऊँगी
समाज की अच्छी सोच से
सुगंध बिखेरूँगी
चारो ओर 
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मुझे खिलने दो।
नदी हूँ मैं
ठण्ड पानी की
तुम्हारे जीत और हार की
तुम्हारे मन और जीवन में
प्यार और मिठास भरने
मुझे बहने दो।
नदी के दो किनारों के मध्य
छोटे- बड़े पत्थरों के ऊपर
जिधर से जाऊंगी
पथ बनाते जाऊंगी
सभी तरह की गुस्सों को
हर्ष में बदलते जाऊंगी
मुझे बहने दो।
हाँ, मैं लड़की हूँ
उड़ने दो ,खिलने दो
बहने दो ,जीवन जीने दो।