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Nitu shivanshita

Tragedy Action Thriller

4.6  

Nitu shivanshita

Tragedy Action Thriller

रोटी मेहनत की

रोटी मेहनत की

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377


लगती थी मेला जिस गलियों में,

वहां आज बड़ा सन्नाटा है 

जो घूमते थे टहलते थे कभी यहां

वो अब कोई यहां न आता है 

है लोग कितना मजबूर यहां 

जो है अभी मजदूर यहां 

न काम मिला न काज है 

दाने _दाने को मोहताज है 

ये सहर की गलियों में 

दिन भर का थकना होता था 

एक जेब खाली मगर था 

दूजे में रकम छोटी थी 

मेहनत की वो सुकून भरी 

जब मिलती शाम की रोटी थी ।

आ गई अब मशीन यहां 

जहां काम हमारा होता था 

वो जगह भी खाली हो चुकी

जहां बेबसी सोता था 


न पढ़े लिखे हम है जो सीखे 

कहानी इमारत वालों की 

उम्मीद भरी निगाह देखती 

राहें ऊपरवालों की 

वो है बड़ा दानी है 

पर ये दिल मेरा स्वाभिमानी है 

आदत सी हो गई है अब तो 

जीना आया था जिस पथ से 

खाऊं न मैं मांग किसी से 

लाऊंगा रोटी मेहनत से।


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