एक मीरा
एक मीरा
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प्रीत की डोर बंधे है ऐसे
सब कुछ खोया मोर
नैन थके न अंत काल तक
निहारे रास्ता तोर
हे गिरधारी एक दरस को
कब से नैन निहारे
मैं पागल नहीं, तुम प्रीतम मेरे
फिर क्यों लोग पत्थर मारे
धरा निहारूँ, गगन निहारूँ
निहारूँ तुझको बहती पवन तक
मन की प्रीत ये ऐसी बंधी की
टूटे न अब जनम जनम तक
नीर सुख गए नैन में मोर
तुझसे प्रीत लगा चितचोर
जो है मेरा अर्पण ये जीवन
हो मेरे प्रीतम तुम मोहन।