रंगों का मिजाज
रंगों का मिजाज
रंग बरसे
यह कैसा हो गया है
रंगों का मिजाज
कितना भी बिखेरो
धूसर ही नजर आता है
आने वाला कल
धीरे-धीरे रेंगता आज।
खिलता हुआ हरा, पीला, उन्नाबी
चमकता नीला, बैंगनी
सपनों सा गुलाबी,
कितना बड़ा हुजूम है
कितने सारे रंग,
पर क्यों भला
इनमें से एक भी
न आंखों से छलकता है
न होंठों पर विंहसता है,
और मन
मन में उतरना तो बहुत दूर
उसे हौले से भी
कोई नहीं छूता है
कोई नहीं छूता है।
देख कर चटक लाल
अब नहीं आती याद
खनकती चूड़ियों भरी
भौजी की लचकती कलाई,
न कौंधता है मन में
किसी जूड़े की ओट झांकता
वो नटखट गुलाब,
बस
पथरा जाता है मन को
दुधमुंही किलकारियों,
उमगती खिलखिलाहटों
के लाश हुए वजूद से रिसता
रक्त का सैलाब।
और वो हरियल सावन!
वह, ठिठक कर रह गया है
टेरती पनियायी आंखों में,
दरवाजे पर का नीम
पियरा गया है यादों में,
बंट गयी है बखरी
अम्मा बाबू के बाद,
और अब
किसी भी देहरी को नहीं है
उसका इंतजार।
अलमारी के सबसे निचले खाने के
अंधेरे कोने में
सरका दी है उसने
वो गुलाबी साड़ी,
अपने सतरंगे सपनों को तारों से
जो उसने थी काढ़ी,
पहाड़ सी जिम्मेदारियों के बीच
किरच किरच चुभता है
उसका रंग गुलाबी।
क्या होगा भला
बरस में एक दिन
चेहरों पर मलने से गुलाल?
सचमुच जोड़ना है रिश्ता रंगों से
तो बदलना ही होगा हमें
ये हाल।
माना,
दूर तक धुंधलाया है आसमान,
बह रही है
बस जहरीली बाताश,
एक डग भी बढ़ाना आगे
नहीं लगता आसान,
पर
हम ही ने तो उगायें हैं
ये जंगल नागफनी के
तो हम ही न्योतेंगे न ऋतुराज।
आओ चलें
करें एक नई शुरुआत
चेहरों से मन तक
सब हो जाये सराबोर
जरूर लौटेगी
रंगों की वह बरसात
आओ न
करें एक नई शुरुआत
आज से
अभी से
एक नई शुरूआत।
रंगों भरी शुरुआत...