पड़ाव जीवन का

पड़ाव जीवन का

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आओ

अब लौट चलें

टैक्सी के पीछे छूटा

धूल का गुबार

कब का हो चुका है ग़ायब,

आओ चलें


आयेंगे न वे फिर

अगली छुट्टियों में

फिर सूने दिन होंगे त्योहार

तब तलक करने को इंतजार

आओ, अब लौट चलें


नहीं, क्यों होगा बेरंग

अपना घर

देखो, मैं ले आया हूं

ये ताज़ा तरीन फूल,

इनसे जुड़ी यादें

गयी हो क्या एकदम भूल

सजा कर इन्हें कोने में

हम सुनेंगे

अपने दिनों के गानों का

पुराना रिकार्ड,

घुटनों पर डाल शाल

करेंगे याद

जाड़ों की शामों में

पहाड़ी पर की वह झील ।


नहीं, घर में कैसे होगा

भला सन्नाटा

अब भी

कमरे की हवा में

टकरा रहे होंगे एक दूसरे से

वे बेलौस ठहाके,

लूका- छिपी खेलती

किसी कोने में

दुबकी होगी

जबरन रोकी जा रही हँसी,

चलो तो तुम

राह तक रही होगी अब

देहरी पर की चमेली

आओ,आओ न

अब लौट चलें।



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