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उम्मीद कल की..

उम्मीद कल की..

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घर के सामने की

कच्ची ज़मीन पर

सूखी टहनियों सी

टाँगे फैलाऐ

बैठा बच्चा

मुँह उठा कर

देखता है

नीले आसमान की ओर उड़ता

गुलाबी गुब्बारा.

 

मोहल्ले के

ढहते मंदिर की दीवार फोड़

निकले पीपल की जड़ में

छिपाती है

भंडारे में मिली मिठाई का

बचा टुकड़ा

फटी फ्राक बिखरे बालों वाली

छोटी लड़की.

 

पान की दुकान पर बजते

कान फोड़ संगीत के बीच

रटा रहा है पहाड़ा

वो बूढ़ा आदमी

अपने पोते को.

 

पीठ पर टिके

आसमान पर चलते

रंगों के मेले से बेख़बर

छत की मुंडेर पर

बैठे लड़के

पलट रहे हैं अख़बार

नौकरी के इश्तेहार की तलाश में.

 

अँगड़ - खँगड़ से भरे

टीन के पुराने बक्से पर

लटके ताले सी

टँगी है

सबकी नज़र में

उम्मीद

कल की .

 


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