चांदनी का बीज
चांदनी का बीज
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मेरे भीतर आग
दिए की लौ सी
लरजती है
आतुर
रोप आने को
हर अमावस्या की कोख में
चांदनी का बीज।
चूल्हे की आंच सी
सुलगती है
हर सीले कोने में
पहुंचाने को गरमाई
ममतामयी हथेलियों की।
बुरे दिनों पर
प्रार्थना के बोल सी
छा जाने को
अगरबत्ती की गंध में
घुलती है।
राख के ढेर में दबी
नन्हीं चिंगारी सी
है ये आग
जो
मौका पड़ने पर
मशाल सी दहकती है।
हां
यह भीतर की आग
हर पल
उजाले का एक
नया अध्याय रचती है।