दुःख और साहस

दुःख और साहस

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दुःख के कांटों पर

तुम्हारे पैर कांपे क्यों,

तुम्हारा हृदय

घबराया क्यों,

पीड़ा के इन क्षणों में

इस ठूंठ को देखो,

कल तक

हरा-भरा था

फूलों से गदराया था,

विहगों का गुंजन था,

मधुरिम यौवन था,

आज

भोग रहा है,

पतझड़ की यह एकाकी वेदना,

झेल रहा है,

अपने नितांत अकेलेपन को

पर क्या वह झुका है?

अपने अस्तित्व की दृढ़ता को भूला है

नहीं,

सिर उठाए वह

विश्वास की दृष्टि से

देख रहा है,

उस भविष्य को

जिसमें प्रतिबिम्बित होगा

उसका अतीत,

वह जड़ है

फिर भी दृढ़ है

तुम भी सीखो

मानव

अपनी मानवता को जीना,

आंसू पीड़ा के हलाहल

हंसते हंसते पीना,

पाऔगे तुम

ये दानव नहीं

मात्र बौने हैं

तुम्हारे साहस, विश्वास के हाथों

तो ये खिलौने हैं।



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