Namita Sunder

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अंतः यात्रा

अंतः यात्रा

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आज

हमें जाना है

उन जगहों में

जहां हम कभी नहीं गये।


अनजानी दिशाओं में

कभी न लौट कर

आने वाली राहों पर।


समझ में न आने वाली

बोली में

की गयी

दुआओं की छांव तले।


घनी हरियाली के अंधेरे में

टूटे चबूतरे पर

ऊँचे पेड़ के नीचे

मंदिर से बाहर किये गये

सदियों पुराने

किसी देवता की देहलीज़ पर।


मनौतियों के धागे से डोलते

बया के घोसलों वाले

तालाब किनारे के

पेड़ के पास।


शायद

वहीं कहीं मिल जाय

वो चाभी

जो खोल दे ताला

भीतर तक जाने का।


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