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आ. वि. कामिरे

Tragedy

4.5  

आ. वि. कामिरे

Tragedy

रंगो मे रंगी दुनिया

रंगो मे रंगी दुनिया

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रंगो मे रंगी ये दुनिया

इतनी क्यो हुयी बेरंग ?

साथ जिन अपनो का हमने निभाया

उन्ही लोगो ने आज साथ छोड दिया

हर दिन हर पल 

जिसके साथ रहने के सपने थे मैने देखे

उसने ही उन सपनो को करके चूर फेंक दिये

पता नही ये रंगो मे रंगी दुनिया 

आज इतनी बेरंग कैसे हो गयी ?

जो कल थे हमारे वफादार

आज वही बन गये क्यो गद्दार

जो कल सलाम करते थे मुझे

आज वोही भुल गये सारे

पहले दोस्ती के लिये यही लोग 

गिडगिडाते थे मेरे सामने

पर आज वही लोग शर्माते है 

मुझे सिर्फ

अपना दोस्त कहने मे

पता नही ये रंगो से भरी दुनिया 

इतनी बेरंग कब हुयी ?

जहा बच्चे देखते कुच्छ सपने नये

तो उन्ही के ही सपनो का गला घोट दिये

जहा शिकायत होती नही कभी खतम

और जिंदा आदमी 

छोटीसी सी वजह के लिये तोड देता है दम

पता नही यार ये रंगो मे रंगी दुनिया 

कब इतनी बेरंग हो गयी

सपनो का हाथ पकडो तो हाथ कट जाता है

और ना पकडो तो दिल मर जाता है

पता नही यार ये रंगो मे रंगी दुनिया 

कब इतनी बेरंग हो गयी..!.


 



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