रंग
रंग
कैसा होता है रंग पिया का
जब भी तुझको देखूँ गाल गुलाबी हो जाते हैं
अपनी आँखों में सतरंगी सपने तेरे संग समाये हैं।
लाल रंग में रंग जाती हूँ तेरे एक छुअन से मैं
पीले रंग में रंग देते हो बाहों में भर कर तुम
नारंगी रंग है डाला तुमने अपना कह कर
हरा रंग बिखरा है यूँ मेरे आसपास
जैसे तुम यहीं चुपके से कहीं देखते हो मुझको।
कभी विरह की अगन में बेरंग हो जाती हूँ मैं
तेरी एक छुअन से सतरंगी हो जाती हूँ।
यूँ ही रहो तुम पास मेरे और रोज रंग भरते रहो
कभी सपनो में कभी हकीकत में
रोज अरमान यूँ पलते रहें।
बस ज़िन्दगी तेरे नाम का रंग रंगती रहे
ओर निखर जाऊँ रोज इस रंग में मैं।
पिया कुछ यूँ ही भरते रहो रंग अपने प्रेम का
बन्द करके पलकों को बस जीती रहुं मैं तुझ में।

