STORYMIRROR

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

4  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन

1 min
110

एक कुटुम्ब सकल जग अपना,

मगर निकटता सराहते हैं मन।

भले जन्मे हों वे अलग उदर से,

हों रूप- रंग में भले अलग तन।

रक्षक-रक्षित के शुभ भावयुक्त है,

अति प्यारा उत्सव है रक्षाबंधन।


पुण्य पूर्णिमा श्रावण मास को,

रक्षाबंधन का त्यौहार मनाते हैं।

भाई-बहन इक दूजे की रक्षा का,

शुभ दृढ़ वचन देते हैं और पाते हैं।

दोहराते हैं हर साल अपना वचन वे,

करते हैं सुदृढ़ शुभ भाव का बंधन।


पर इन सब वचनों के रहते हुए भी,

अभी क्यों सुरक्षा नारी की अधूरी है?

असुरक्षित भगिनी क्यों वचनबद्ध की,

विधना क्या तेरी ही कोई मजबूरी है?

निज-पीड़ा सम पर-पीड़ा का भाव नहीं,

रुकते हैं नहीं क्यों अबलाओं के क्रंदन?


स्वेद बहाता वह किसान हो या,

हों वे सरहद पर निडर जवान।

पुलिस-चिकित्सा-मीडिया कर्मी,

तन-मन से श्रम करें बिना थकान।

हर विपदा हर हैं ये हमको बचाते,

देते हैं हम सबको रक्षा का बंधन।


रक्षा और दया प्राण अपनी संस्कृति के,

अक्षुण्ण बनाए रखें हम इस परंपरा को।

दायित्व-कृतज्ञ भाव को हम रखें बना के,

एक कुटुम्ब रखना है हमें पूरी वसुधा को।

है पुनीत दायित्व यह अब हम सबका ही,

रक्षक-रक्षित बन करें सबका ही अभिनंदन।


ଏହି ବିଷୟବସ୍ତୁକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରନ୍ତୁ
ଲଗ୍ ଇନ୍

Similar hindi poem from Abstract