रजामंद
रजामंद
बता दो ना मुझे क्या राज है छिपा रखा,
चेहरे पर क्यूँ कर ये नूर है खिला खिला।
हर पल सोचता हूं,
हाल ए इश्क कैसे जान पाऊंगा तुम्हारा।
अपनी आरजू का कैसे खोल पाऊंगा पिटारा।
मेरा वजूद तुझसे ही,
मेरी आरजू तू ही।
हाल ए इश्क बयां करती हूं,
तुझसे ही आशिकी रखती हूं।
मेरी सांसों की वजह तुम बन गए हो,
इस शायराना आलम की
धड़कन बन चले हो।
तेरी बातों से मिल रहा सुकून
है दीया बाती बने ऐसा जुनून है।
जानती नहीं क्या सौगात तुने मुझे दी है
मृग मरीचिका नहीं,
तू मेरी हकीकत बन गई है।
जिस मन में बस रेत उड़ती थी अब तलक
बाग बगीचे बसने लगे हैं हर तरफ।
मैं पंख लगाए उड़ती हूं
तुम हवा का झोंका बनते हो।
बस है यही फरियाद,
यादें जंजीर न बन जाए कहीं।
बन माला के मोती महके हर कहीं
मैं तुझसे रजामंद रहूं,
और तू मुझसे रजामंद रहे।
और बस यूं ही हो जाए,
पूरी हमारी सारी मुरादें।