रिश्तों की पुड़िया
रिश्तों की पुड़िया
कभी खुशिया हैं इसमे
तो भरे गम है कभी
मुस्कान कभी लबों पे
तो आंखें नम हैं कभी
दवा दारू से भरी जैसे
वैध की कुटिया
जज़्बातों से लबरेज़ है
ये रिश्तों की पुड़िया।
अपनेपन की भरमार भी है
बुराईयो का बाज़ार भी है
पीठ पिछे हैं लोग भले भी
मुँह पर काफ़ी प्यार भी है
और बेटे का इंतजार गाँव में
जैसे करती वो बुढिया
जज़्बातों से लबरेज़ है
ये रिश्तों की पुड़िया।
रिश्तेदार हैं औखे औखे
कुछ नालायक कुछ मन सौखे
कुछ को तो अबसार भी है
बाकी तो आधार ही है
और अपनो से ही औछी औछी
घात झेलती गुड़िया
जज़्बातों से लबरेज़ है
ये रिश्तों की पुड़िया।
