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Manthan Rastogi

Drama

3  

Manthan Rastogi

Drama

रिश्तों की पुड़िया

रिश्तों की पुड़िया

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200

कभी खुशिया हैं इसमे

तो भरे गम है कभी 

मुस्कान कभी लबों पे

तो आंखें नम हैं कभी 

दवा दारू से भरी जैसे

वैध की कुटिया

जज़्बातों से लबरेज़ है

ये रिश्तों की पुड़िया।


अपनेपन की भरमार भी है

बुराईयो का बाज़ार भी है

पीठ पिछे हैं लोग भले भी

मुँह पर काफ़ी प्यार भी है

और बेटे का इंतजार गाँव में 

जैसे करती वो बुढिया

जज़्बातों से लबरेज़ है

ये रिश्तों की पुड़िया। 


रिश्तेदार हैं औखे औखे

कुछ नालायक कुछ मन सौखे

कुछ को तो अबसार भी है

बाकी तो आधार ही है

और अपनो से ही औछी औछी

घात झेलती गुड़िया 

जज़्बातों से लबरेज़ है

ये रिश्तों की पुड़िया। 


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