रिश्तों का संसार
रिश्तों का संसार
बात कर रही थी
मैं जब मासी से,
दिख रही थी उनमें,
मुझे माँ मेरी।
क्या मासी को भी दिख रही थी,
मुझमें उनकी दीदी ?
माँ, में दिखती है मुझे मेरी नानी,
उँगलियाँ मेरी याद दिलाती,
है मुझे मेरी दादी।
मैं दिखती हूँ थोड़ी माँ सी,
और ज्यादा पापा सी।
लोग कहते हैं - बेटी,
तो है तुम्हारी परछाई।
बेटे की शक्ल है पिता सी,
मगर झाँकती हो आँखों से तुम ही।