अज्ञात
अज्ञात
पूरे चाँद की ये आधी रात है।
कुछ यूं घर कर जाती हैं
चीज़ें न दिन को चैन न रात में क़रार।
भरी महफ़िल में तन्हाई डसती है।
सुकूँ की मंज़िल तो नज़र आती है
किंतु रास्ता कहीं ग़ुम सा है।
मैं हारी सब कुछ टूट कर बिखरी
ख़ुदको समेटने का प्रयास करती हूं।
चकोर को चाँद की इच्छा है।
मौत का साया मिलेगा या मिलन चाँद से होगा।

