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yasmeen abbasi

Tragedy

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yasmeen abbasi

Tragedy

कोई न समझा

कोई न समझा

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दिल का शोर कोई सुन नहीं पाता

मेरी ख़ामोशी कोई पढ़ नही पाता।

कलम उठाकर सब लिखना चाहती हूँ

कमल के आगे डर जीत जाता है

सब कुछ कह देना चाहती हूँ।

बातें बहुत हैं करने को 

मजबूरियों के आगे झुक जाती हूँ।

कुछ जिम्मदारियों ने दामन पकड़ा है 

उनसे हाथ छुड़ाना चाहती हूँ।

मैं ऐसी नहीं थी जैसी हो गई हूँ

कोई क्यों ये समझ नहीं पाता।



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