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Rajendera Suthar

Drama

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Rajendera Suthar

Drama

पिया

पिया

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मैं नित रोती हूँ करती हूं रुदन

खैर पिव के लिए

पिव है सो प्यासा धन का करता है संग्रह

कमाई अपनी विदेशों में

मैं दिन दिन छीजत टूटत मन को

करती हूँ बाट देखती पिव की

आता है मास वसन्त का 

कुहकती है कोयल भी 

देख उसके मन को रात होती निडर

पिया बिनु वसन्त पतझड़

लगता है 

मास आता श्रावण का घनघोर घटा उमड़ती है

मोर कुहकते गर्जना होती है

पिव पिव सुन ध्वनि पिया की याद आती है

सुन सखी भी मुझे ढांढस देती है

पिव है जो चकवा चकवी 

रात में भी बतियाते है 

जब बिछुड़ के हाल एक दूसरे का सुनाते हैं

दिन दिन छीजत पिव बिनु 

नैन नीर बरसता है।। 



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