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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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रिश्ते

रिश्ते

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हवाओं में बुने कई ताने-बाने

सपनों में सजाए आशियाने।   

धरातल पर लेकिन,   

रिश्ते थे अनजाने।   

कहते रहे हमसे    

लगते हो जाने पहचाने।

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गर सपने नहीं रिश्ते बुन लिए होते।  

आज अपनों की

  कुर्बत में होते।  

खलिश में नहीं 

 उल्फत में जीते।

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रिश्तों को गर बहने देते। 

दल-दल में यूँ न धंसे मिलते ।

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रिश्तों को गर बहने देते। 

हाथों में हाथ लिए होते।

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रिश्तों को गर बहने देते।

खलिश के एहसास में तो न जीते।



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