रिश्ते
रिश्ते
हवाओं में बुने कई ताने-बाने
सपनों में सजाए आशियाने।
धरातल पर लेकिन,
रिश्ते थे अनजाने।
कहते रहे हमसे
लगते हो जाने पहचाने।
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गर सपने नहीं रिश्ते बुन लिए होते।
आज अपनों की
कुर्बत में होते।
खलिश में नहीं
उल्फत में जीते।
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रिश्तों को गर बहने देते।
दल-दल में यूँ न धंसे मिलते ।
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रिश्तों को गर बहने देते।
हाथों में हाथ लिए होते।
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रिश्तों को गर बहने देते।
खलिश के एहसास में तो न जीते।
