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Manu Sweta

Drama

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Manu Sweta

Drama

रिश्ते हैं अजीब से

रिश्ते हैं अजीब से

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मेरे रिश्तों की पोटली में

सब रिश्ते हैं अजीब से

कभी लगते मुझे दूर से

कभी लगते करीब से।


कभी वो मुझसे जीते से

और कभी लगते हारे से

कितने जतनों से संभाला इनको

एक एक तह तैयार की थी रिश्तों की।


तब जाकर बनी थी ये पोटली

विश्वास की गाँठ बांधी थी इसमें

कहीं से पकड़ ढीली न पड़ जाए

प्यार से मजबूत पकड़ा था।


लेकिन न जाने कहाँ कमी रह गई

और कहाँ मैं हो गयी विफल

जो आज भी अधखुली पोटली

मुझसे सवाल करती है।


कि कहाँ है वो रिश्ते

जिसको तूने इतने प्यार

से सींचा था ?


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உள்நுழை

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