रिश्ता
रिश्ता
साथ दूंगा मैं हमेशा तुझसे ये वादा रहा
प्यार का ही तुझसे टूटेगा न ये रिश्ता रहा
जिंदगी भर संग तेरे ही चलूंगा हर क़दम
ए सनम वादें वफ़ाये प्यार का मेरा रहा
तोड़ पायेगा नहीं कोई भी तुझसे रिश्ता ये
जिंदगी भर गाठ लगा जो प्यार का रिश्ता रहा
एक पल भी मैं ख़ुशी से हंस नहीं पाया हूँ
जिंदगी पे रोज़ ग़म का मेरी तो साया रहा
किस तरह उससे मिलनें जाता मैं यारों भला
रोज़ ही उसकी गली में देखिए पहरा रहा
गैर हूँ जैसे यहां मैं तो सभी के ही लिए
भीड़ में यारों अपनों की बीच मैं तन्हा रहा
जिंदगी भर साथ देने का किया था वादा जो
बन गया वो गैर "आज़म" से नहीं अपना रहा।
आज़म नैय्यर