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Mani Aggarwal

Tragedy

5.0  

Mani Aggarwal

Tragedy

रीतियाँ

रीतियाँ

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रीतियों के हित निभाते जा रहे हो हर प्रथा को,

क्या कभी इनमें निहित उद्देश्य को तुमने पढ़ा हैं ?

एक पुतला फूँक कर श्री राम का जय घोष करके,

कौन से आदर्श को नव पीढ़ियों के हित गढ़ा है ?


थी विजय अच्छाइयों की दुर्गुणों का था दहन भी,

क्या कभी तुम फूँक पाए निज विकारों का दशानन।

बेटियों को ताकते हो नित दुराचारी नजर से,

दंभ से फिर भी है ऊँचा, क्यों झुका न बोलो आनन ?


एक पत्नी व्रत निभाया, राम अनुयायी अगर हो ?

भ्रात हित क्या त्याग पाया राम अनुयायी अगर हो ?

राम नें तो कैकई की बात को वरदान समझा,

वृद्ध आश्रम क्यों बनाया, राम अनुयायी अगर हो ?


भेंट कर संस्कार सारे आधुनिक खुद को जताते,

तूल देते धर्म को इंसानियत को नित सताते।

कौन हृद सीता बसी हैं कौन हृद अब राम जग में ?

और रधुवंशी स्वयं को गर्व से फिर भी बताते।


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