रात पहाड़ों जैसी भारी।
रात पहाड़ों जैसी भारी।
रात पहाड़ों जैसी भारी निंदिया सागर से गहरी।
जीवन की आशाएं अटकीं बीच भंवर नैया ठहरी ।
दिल का पंछी नीले नभ में भटक रहा है बेबस हो
दिल को मैंने समझाया पर उसकी भी जिद ठहरी।
प्यार कोई खैरात नहीं है ना ही कोई खिलौना है।
लाख पुकारा मैंने तुमको लेकिन प्रीत बनी बहरी ।
नाव तभी तक नौका थी जब तक वो पानी में थी
जब से पड़ी रेत सूखी में भूली सागर की देहरी।
ले पतवार चले आओ तुम माझी इस जीवन के।
तुम बिन ये जीवन सूना सागर तुम मैं जल लहरी।
