रात की अँगुली
रात की अँगुली
रात की अँगुली पकड़ जब मैं चला था।
धुंध का इक कारवाँ आगे खड़ा था॥
जिंदगी की कशमकश में जिंदगी को।
जिंदगी से दूर मैंने कर दिया था॥
ठोकरों में उम्र बीती जा रही पर।
झेल कर कठिनाइयाँ आगे बढ़ा था॥
कौन जाने कब कहाँ किससे मिलूँगा।
हर कदम तो मौत का ही सिलसिला था॥
मौत की आहट अचानक आ गयी तो।
जिंदगी से मोह भारी हो गया था॥
बन भुलक्कड़ भूल अपने दर्द सारे।
खुश रहे सारा जमाना मैं हँसा था॥