रात का आंगन
रात का आंगन
रात आंगन है जहाँ शीतलता उतरती है,
उस शीतलता के आंगन में रातें कुछ कहती है,
दिन की दुपहरी जितना जलाती है,
रात की शीतलता उतना सहलाती है,
इस आंगन में जुगनू अठखेलियाँ करते हैं,
कभी छिप जाते तो कभी रोशनी से जगमगाते हैं,
किसी का दर्द इस आंगन में हल्का हो जाता,
कोई अपने सुख के क्षणों को याद करता है,
दिन भर की थकान इस आंगन में ही उतरती है,
रात के आंगन की ठंडक अच्छी लगती है,
तारों की जगमगाहट किसी का एहसास दिलाते है,
आंखों में नींद लिए कहानियों के स्वेटर बुनते हैं,
नींद लिए आंखों में कई सपने संजोती है,
ख्वाबों में भोर की आशाएँ सजती है,
रात आंगन है जहाँ शीतलता उतरती हैI