रास्ता
रास्ता
यूँ ही मैंने एक दिन रास्ते से पूछ लिया-
कहाँ तक जाते बोलो, यह पूछ लिया।
वह बोल उठा- सड़क, मैं जाता हूँ वहाँ वहाँ
जहाँ तक जाना चाहते हो तुम, वहाँ।
ठिकाना बहुत है मेरा, मंजिल नहीं मगर
लो जाऊँगा वहाँ तक, मंजिल तय अगर।
जब कभी नाउम्मीदी से पीछे मुड़ जाते
घबरा कर अक्सर हिम्मत छोड़ देते।
पीछे से आवाज देता, देते रहता हूँ मैं
जो जागना चाहते, उन्हें जगाता हूँ मैं।
कायरों को भी कभी ऐसे ना छोड़ देता
ख्वाबों मे जा जा कर हौसले भर आता।
कुछ वापसी कदमों की आहट जब सुनता हूँ
काँटे छाँट सफर उनका आसान कर देता हूँ।
मंजिल पर खड़े जब मुस्काती कामयाबी
किसी और की तलाश मे आगे बढ़ जाता हूँ।
ना सोचो मैं सिर्फ़ गली, पगडंडी या डगर हूँ
नगर, महानगर, गावँ का दौड़ता सफर हूँ।
मैं वहाँ तक की ज़मीन हूँ, तेरे पैरों तले
तू आसमाँ मे उड़े या फ़िर समंदर में चले।
अंतरिक्ष की फ़तह या चोटी हिमालय की
सर्जिकल स्ट्राइक या घाटी कारगिल की।
हौसलों की उड़ान या शौर्य की ललकार
दुश्मनों को रौंदना हो या जन्मभूमी की पुकार।
हर हासिल कामयाबी का ठोस एहसास हूँ मैं
आगे बढ़ते कदमों का अटूट विश्वास हूँ मैं।
डर कर हारने वालों क ना मैं साथ देता
पीछे मुड़ गया जो उनके साथ छूट जाता।
पीछे मुड़ने का नाम हमेशा हार नहीं होता
मुड़ते हुए रास्ता ही शिखर पे पहुँचाता।
ना पुछो मुझे ए राही ! मैं कहाँ जाता हूँ
जहाँ तक चल सको, वहाँ तक जाता हूँ।
धरती, गगन, सागर, अनल हो या अनिल
मैं हूँ रास्ता हर जगह फ़तह कर लो मंजिल।।
