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रानी

रानी

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जंगल में बसते कबीले में खिला फूल

रानी नाम से

कुछ नाबालिग सी

न जाने बिछड़ गई क्यूँ।


जमशेदपुर का रेलवे स्टेशन.

बैठाकर ट्रेन में पहुँचा दी गई

दिल्ली की भीड़भाड़ में।


पहली बार देखा इतना बड़ा शहर

मिटटी के घरों से निकलकर

इतने बड़े कंक्रीट के जंगल में,


चौंधिया गयी नन्ही सी जान

पेड़ों के जंगल से

रानी आ गयी शैतान से बदतर

आदमियों के जंगल में,


जहाँ सभ्य समाज का आदमी

घूरता हैं

गंदी नज़रों से,


वस्त्रों के आर-पार से

मानों नोच लेगा

मांस का वक्ष,


बेध देने वाली नियत से

तलवार सी तेज

निगाहें करती है

बलात्कार नज़रों से,


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रानी बेच दी गयी है

दलाल के हाथों,

काम दिलवाने के बहाने,


हिरनी सी मासूम को

दल्ले ने आँख पुचकारी

साथ ही देखा है

उसके मांसल बदन को,


रानी दिल्ली में मालिक के यहाँ

करने लगी है काम,

कुछ बिलखती रोती,


मालिक तुष्ट करेगा अपना काम

रानी को भोग भरेगा उसका पेट

अंजाम से अनजान रानी

कब तक खुद को रक्ष पायेगी,


एक दिन वापस आएगी जंगलों में

जन्म देगी

बिना बाप के नाम वाले बच्चे को,

मासूम कली माँ कहलायेगी,


ऐसी कितनी रानियों के

राज़ छिपे जाते हैं

पापियों के पिंजर में

फंस जाती है,


फ़ड़फड़ाती,

पंख घायल सी,

रोंद दी जाती है।


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