राम-नाम का जाम
राम-नाम का जाम
आज तू है, कल कोई और
ये दुनिया की रीत
मुझको दुनिया से क्या लेना
मेरी राम से प्रीत।
मेरी राम से प्रीत
राम हैंं प्रीत निभाते
जग में बंदे तो हैं
यूँ ही आते-जाते।
राम तुम्हीं से आस
कि मुझसे प्रीत निभाना
मेरा प्रणय-निवेदन
तुम तो ना ठुकराना।
मेरे प्रेम-प्रसून क्यों
नहीं खिल पाते हैं...!
क्लेेेश के काँटे
कलियों में ही बिंध जाते हैं।
इसी भरोसे प्रेेेम-डोर
अब तुम संग बाँँधी
मेरी हर कामना
तुमने ही साधी।
तुम ही सुहानी भोर
तुम ही सुरमई शाम
अब जाकर अधरों पर लागा
राम-नाम का जाम......!