राम कथा
राम कथा
जब पीड़ा भक्तों पर आई
प्रभु धरती पर जन्मे भाई
रावण के अत्याचार रोकने
सीता रूप लक्ष्मी जी आई
शेषनाग जी हुए अवतरित
लक्ष्मण जी बन करके भाई
रुद्र रूप बन कर हनुमान
जन्मे कोख अंजना माई
शुरू हुई एक पावन गाथा
राम सीता की हुई सगाई
जब पहुँचे वे सब अयोध्या
तिलक की तब तैयारी कराई
राम के तिलक की बात सुनी
दासी ने तब पट्टी पढ़ाई
दशरथ को कैकयी ने अपने
दो वचनों की याद दिलाई
राम के लिए वनवास और
पुत्र भरत को गद्दी दिलाई
पिता वचन के मान हेतु
राम ने मर्यादा दिखाई
निकले संग सीता लक्ष्मण के
वन में एक कुटिया बनाई
ख़ुशी से रहने लगे वन में
तभी शूर्पनखा वहां आई
लक्ष्मण ने काटी जब नाक
रावण को उसने दी दुहाई
रावण की मति गई मारी
अपहरण की युक्ति जो बनाई
सीता को कुटिया में न देख
राम लक्ष्मण की आँख भर आईं
वन में ढूंढने लगे जब दोनों
कही पर भी नजर न आई
हनुमान ने सुग्रीव के साथ
राम लखन की भेंट कराई
सीता का पता लगाने को
सुग्रीव ने सेना पठाई
सागर को करना था पार
पवनपुत्र ने छलांग लगाई
रावण पर क्रोधित होकर
हनुमान ने लंका जलाई
सीता जी का पता लग गया
राम को आकर बात बताई
राम ने वानर सेना के संग
कर दी लंका पर तुरंत चढ़ाई
रावण का कर वध राम ने
सीता को मुक्ति दिलाई
चौदह बरस बाद घर आये
अयोध्या ने खुशियाँ मनाई
राम है मर्यादा पुरुषोत्तम
यह बात सब के समझ आई।