राखी नही यह विश्वास है मेरा
राखी नही यह विश्वास है मेरा
राखी के इस बन्धन में
प्रेम के धागे को
बाँधूँगी जब भाई-भाभी
तुम्हारी कलाई पर,
ऱेशम की डोर मात्र
न समझ लेना
समझना यह विश्वास है
कि तुम हर पल मेरा
ध्यान व मान रखना,
लज्जित न होने देना
जब पति, ननद, देवर-देवरानी
के तानों से व्यथित जब तन मन,
तब हौसलों
का मरहम लगा कर
जीने का उत्साह भर देना,
नहीं चाहिए तुमसे
धन और उपहार कोई
सुख दुख में मेरे
साथ खड़े हो, कभी मैं,
तो कभी तुम इस जीवन में ।।