राखी की डोर
राखी की डोर
रिश्ते की अहमियत से, रहते अनजान, जब साथ रहते बहन भाई
चली जाती परदेस बहनें,
तब भाई को न भाती,
किसी रक्षाबंधन पर अपनी सूनी कलाई,
बहन भी दूर बैठ सोचती,
कैसे निभाऊँ रीत, जो उसने बचपन से निभाई
रिश्ते बढ़ते हैं, भाई को भाभी के घर,
और बहन को, खुद भाभी बनने पर, करनी होती ननद की विदाई
भेजनी पड़ती हैं, संदेशवाहक द्वारा, प्रेम के धागे और मिठाई
ये मजबूरियाँ, कभी बहन, तो कभी भाई को पड़ती हैं दिखाई
प्रेममय बंधी राखी की डोर को
लक्ष्मीबाई और नवाब अली की दूरियाँ नहीं तोड़ पायीं
ये रिश्ता उन रेशम के धागों का जिसमें गाँठे कभी न पड़ पायीं
