S.Dayal Singh

Abstract Others

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S.Dayal Singh

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** राज़ **

** राज़ **

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मेरे दोस्त मुझसे नाराज़ है,

गहरा कोई इस में राज़ है।

दूर उठ रहा है तूफ़ान जो,

रूठा हुआ है आसमान जो,

मौसम ने ली अंगड़ाई जो,

उसका भी बिगड़ा मिज़ाज है,

गहरा कोई इस में राज़ है।

ये समन्दर जो दिखता शांत है,

वो अंदरूनी बड़ा ही अशांत है,

आया फ़िजा में है बदलाव जो,

किसी ज़लज़ले का आगाज़ है,

गहरा कोई इस में राज़ है ।

चींटियों में आ गया जोश जो,

कीटों में भी भर गया रोष जो,

चिड़िया की आँखें है लाल जो,

वो सहमा सहमा सा बाज़ है, 

गहरा कोई इस में राज़ है।

चाँद में जो आई तपश है,

सूरज के बदले नफ़स है,

तबले की ढीली है थाप जो,

वो साजी भी जो नासाज़ है,

गहरा कोई इस में राज़ है।

जो दबी दबी सी आवाज़ है,

ये जो गहरा गहरा राज़ है,

ये जो बदला हुआ अंदाज़ है,

ये जो बिगड़ा हुआ मिजाज़ है,

ये ज़लज़ला है कि आगाज़ है, 

ये हक़ीकत है कि मिराज़ है ?

गहरा कोई इस में राज़ है।

--एस.दयाल सिंह --



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