राज़ कुछ था नहीं..!
राज़ कुछ था नहीं..!
ऐसा तो कुछ था नहीं जो तुमने जाना नहीं,
इतने रहस्यमयी हम नहीं जो तूने पहचाना नहीं।
थे साथ साथ हर कदम पर साथ कदम चले नहीं,
क्या कहते किसका दम भरते मेरे हमसफ़र।
फिर सफ़र में हमसफ़र कोई तुम सा चला नहीं.
थी राहें और मंज़िले कई, इंतिज़ार में बाहें फैलाए।
कितने राज़ थे जो छुप सकते जहां की नज़रों से
फिर भी रहस्य कुछ तुमसे मैंने कभी छुपाया नहीं।