राही तू चल
राही तू चल
राही तू चल, कहीं हो न जाये पथ अचल !
यहाँ न कोई भाई तेरा है, न बहन तेरी है !
तुझ में जो तूँ है, वही बस तेरा है !
राही तू चल, कहीं हो न जाये पथ अचल !
ज़िन्दगी का जो यह सफर है,
इसमें ग़म न छोड़ते कसर हैं !
कहने को तो जहान साथ है,
पर समय पर कोई फटकता न आसपास है !
राही तू चल, कहीं हो न जाये पथ अचल !
उर्फ़-ऐ-खिलौना बन गया हूँ मैं,
इन उम्मीदों के बोझ से बस थक गया हूँ मैं !
जानता हूँ सफर अभी बहुत है पड़ा,
पर मैं भी मुसीबतो से कब डरा !
राही तू चल, कहीं हो न जाये पथ अचल !