माँ
माँ
आँखें भी कमज़ोर हो गई उनकी ,
बात कभी न कहतीं अपने मन की !
24×7 काम कर लेती हैं ,
तनख्वाह ₹ 1 तक न लेती हैं !
बाल कभी थे उनके भी काले ,
पर हाथों पे भी अब पड़ गए छाले !
उंगलियां काम करते-करते अब उनकी कंपकपाई हैं ,
ख्याल हमारा रखते-रखते न जाने कितनी नींदें उन्होंने गँवाई हैं !
अभाव शब्दों का रह जायेगा ,
बारे में उनके पूरा न लिख पाउँगा !
कभी-कभी तो सपने बुरे आते ऐसे ,
नाकामयाबी मेरी झलके उनके रूखे हाथों पे जैसे !
