राहें इंतज़ार में
राहें इंतज़ार में
जलती शमा जैसे लगती है पिघलने को,
आप ख़ुद ही छोड़ चलेंगे कहीं और ढलने।
बेज़ार दर्द काफ़ी है, चिंगारी भड़काने को,
मैं भी हूँ, ख़ुश्क पत्तों सा, लो ! और क्या चाहिए जलाने को।
उनके आने की ख़बर भर से, ग़ज़ल में,
उमड़ बैठे सरे शेर इंतज़ार में, दिलमहाल में।
ग़ुरबत होती क्या ख़ौफ़नाक जनाब !, कोई पल को,
बुँदे-आब तो क्या राल तक न नशीब निगलने को।
आसानियाँ न होती अच्छी इतनी भी कभी,
ताज में क़लगी भी और रखो फ़नकारियाँ छलने को !