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Chetan Gondaliya

Abstract

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Chetan Gondaliya

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राहें इंतज़ार में

राहें इंतज़ार में

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जलती शमा जैसे लगती है पिघलने को,

आप ख़ुद ही छोड़ चलेंगे कहीं और ढलने। 


बेज़ार दर्द काफ़ी है, चिंगारी भड़काने को,

मैं भी हूँ, ख़ुश्क पत्तों सा, लो ! और क्या चाहिए जलाने को।


उनके आने की ख़बर भर से, ग़ज़ल में,

उमड़ बैठे सरे शेर इंतज़ार में, दिलमहाल में।  


ग़ुरबत होती क्या ख़ौफ़नाक जनाब !, कोई पल को, 

बुँदे-आब तो क्या राल तक न नशीब निगलने को।


आसानियाँ न होती अच्छी इतनी भी कभी,

ताज में क़लगी भी और रखो फ़नकारियाँ छलने को ! 


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